Saturday, June 28, 2008

मुद्दतों पहले

मुद्दतों पहले जहां छोड़ लड़कपन आए
बारहा याद वे दालान, वे आँगन आये ।

रास्ते में किसी बरगद का तो साया न मिला;
हाँ! मगर इसमें बबूलों के कई वन आये ।

घर नगर छोड़ के जिस रोज़ से वनवास लिया
हमसे मिलने कई तुलसी, कई रावन आये ।

रहे गुमनाम हर इक गांव नगर बस्ती  में 
जैसे नाबीना शहर में कोई दरपन आये ।

कट गई उम्र यूं ही आँख मिचौनी में नदीम
दुःख के बैसाख कभी दर्द के सावन आये ।

1 comment:

  1. "रास्ते में किसी बरगद का तो साया न मिला;
    हाँ! मगर इसमें बबूलों के कई वन आए।"

    समाज की सच्चाई, आपकी हर रचना की जान है ! बधाई !

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