Friday, July 18, 2008

बेवतन फ़कीरों से

बेवतन फ़कीरों से पूछना ठिकाना क्या?
इनको तो भटकना है, इनसे दोस्ताना क्या?


दर्द कह के क्या कीजे, दर्द सबकी दौलत है;
दर्द सब समझते हैं दर्द का सुनाना क्या?

ख़ामशी के सहरा में गुफ़्तगू पे पहरे हैं;
फिर सवाल क्या करना,पूछना बताना क्या?

दर्द तो मुसलसल है, इसमें कब तलक रोएं!
हर ख़ुशी को जाना है, इसमें मुस्कराना क्या?

तुम तो जानते थे सब;तुमसे कह के क्या करते!
ग़ैर ग़ैर ही तो था; ग़ैर को बताना क्या?

1 comment:

  1. बहुत बढिया लिखा है।

    दर्द पी के क्या कीजे, दर्द सबकी दौलत है;
    दर्द सब समझते हैं दर्द को छुपाना क्या?

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