Tuesday, July 22, 2008

इक नई दास्तां

इक नई दास्ताँ सुनानी है.
आप सुन लें तो मेहरबानी है॥

हमको तक़दीर से तो कुछ न मिला
अब तो तदबीर आज़मानी है।

उफ़ ये हालात! कौन कहता है
प्रोमथियस की कथा पुरानी है?

ज़िन्दगी बा सुकून ओ बा ईमान
आंधियों में शमा जलानी है।

कौन बाँटे यहां किसी का दर्द?
सबकी आँखों में आज पानी है।

ज़िन्दगी की किताब मुश्किल है।
किसने समझी है;किसने जानी है?

हर अक़ीदा फ़िज़ूल बात; मगर-
बात तो बात है- निभानी है॥

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