Saturday, July 26, 2008

लीजिये अंततः सफल

लीजिये अंततः सफल सबके प्रयास हो गये;
आपसे दूर होके हम विश्व के पास हो गये।

उनको सुनाई जब कभी हमने ह्रदय की वेदना,
उनके भी नयन बह चले;हम भी उदास हो गये।

वो भी समय था हास के जब हम अगाध स्रोत थे;
ये भी समय है लुप्त जब सारे ही हास हो गये।

कैसी पवन विचित्र यह उपवन में देखिये चली,
सारे सुगंधिमय सुमन दाहक पलास हो गये।

आपका नाम जब कभी कर्ण कुहर में पड़ गया
बुझी सी द्रष्टि में कई विद्युत विकास हो गये॥




2 comments:

  1. बहुत भावभीनी रचना है।

    उनको सुनाई जब कभी हमने ह्रदय की वेदना,
    उनके भी नयन बह चले;हम भी उदास हो गये।

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