Thursday, August 14, 2008

रवाँ हों अश्क

रवाँ हों अश्क, लबों पर हँसी नज़र आये;
चिता की लौ में नई ज़िन्दगी नज़र आये।

धुएं से यूं न डर ए दोस्त! बहुत मुमकिन है,
धुएं के पार कोई रौशनी नज़र आये।

क़दम-क़दम पे फ़रिश्तों की भीड़ मिलती है;
कभी, कहीं तो कोई आदमी नज़र आये।

समदरों ने भला किसकी प्यास को सींचा!
उन्हें कहाँ से मेरी तश्नगी नज़र आये।

ये काला चश्मा ही परदा मेरे वजूद का है;
हटे तो सबको मेरी बेक़सी नज़र आये।

2 comments:

  1. माननीय,
    अति सुन्दर! वाह-वाह
    विशेष--

    क़दम-क़दम पे फ़रिश्तों की भीड़ मिलती है;
    कभी, कहीं तो कोई आदमी नज़र आये।


    Sudha Om Dhingra
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  2. धुएं से यूं न डर ए दोस्त! बहुत मुमकिन है,
    धुएं के पार कोई रौशनी नज़र आये।

    बहुत अच्छे अमर भाई !

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