Wednesday, August 11, 2010

यों तो संबंध

यों तो सम्बन्ध सहज से ही ज़माने से रहे
मन में अकुलाते मगर प्रश्न पुराने से रहे

द्वारिका जा के ही मिल आओ अगर मिलना है
अब किशन लौट के गोकुल में तो आने से रहे

बावरा बैजू भी शामिल हुआ नौरतनों में 
और फिर सारी उम्र होश ठिकाने से रहे


प्यासे खेतों की पुकारों में असर हो शायद
मानसूनों को समंदर तो बुलाने से रहे


सूखी नदियों पे बनाए हैं सभी पुल तुमने
अगले सैलाब में ये काम तो आने से रहे

5 comments:

  1. वाह! क्या बात है.

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  2. अमर दादा!
    नीचे वाले तीनों शेर में जो सन्देश है, क्या कहूँ, बस आपके बस की ही बात है.
    बावरा बैजू .... वाला तो उफ्फ कितना कितना अच्छा है! मन में एक दर्द सा उठता है उसे पढ़ के... इतना कठोर सच!
    सूखी नदियों पे ... वाला भी बहुत से सन्दर्भों में, बहुत से परिपेक्षों में ढलने लायक... याद रखने लायक शेर...शब्द नहीं तो भाव ही सही...पर ज़हन में रहेगा अब से.
    मन प्रसन्न हुआ :)
    आपका आभार!

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  3. hamesha ki tarah khubsurat shabdo kaa jaal aap ne buna haen

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  4. Amar Jyoti ji
    Aaj pahali baar apke blog par aayaa hoon. Aapki ghazal padkar anand aa gaya kya khoob ghazal kahi hai apne khaskar ye sher
    sookhi nadiyon pe banaye hain sabhi pul tumane
    agale sailaab men ye kaam to aane se rahe.
    bahut sunder. Badhai.

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  5. amar saheb,
    km likhte hein aur achha likhte hein .is liye in ke hindi ke hisab se likhe shair asar chhod jate hein.
    surender bhutani
    warsaw (Poland)

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