Monday, July 31, 2017

हाँ! हंसता है गोयबल्स,
ठहाके लगाता है हिटलर,
नाचता है मदोन्मत्त मुसोलिनी,
नीरो बजाता है बांसुरी
रणभेरी बजाता है रोमेल,
और ड्रम बजाता है उन जैसा ही
कोई और विदूषक.
और क्या करेंगे वे,
और क्या कर सकते हैं वे?
उन्होंने इतिहास कहां पढ़ा है!
वैसे भी वे सुन चुके हैं घोषणा
इतिहास के अन्त की.
और जिसका अन्त ही हो चुका
उसे क्या पढ़ना!
और इतिहास ही क्यों!
कुछ भी क्या पढ़ना!
और क्यों पढ़ना!
शिक्षित नहीं प्रशिक्षित हैं वे.
और बस! इतना ही काफ़ी है
उनके नज़रिए से.
(‘हँसता है गोयबल्स’ वाक्यांश के लिए ऋणी हूँ कात्यायनी जी का.)

No comments:

Post a Comment